Structure of Indian banking system: Evolution, Types, Challenges, And The Role of Technology

Structure of Indian banking system
Structure of Indian banking system

Structure of Indian banking system भारतीय बैंकिंग प्रणाली की संरचना दुनिया के सबसे बड़े और जटिल प्रणाली में से एक है। ये अलग अलग तरह के बैंकों से मिल कर तमाम जनता के जरूरत को पूरा करता है। क्या ब्लॉग पोस्ट में हम भारतीय बैंकिंग प्रणाली की संरचना, अलग अलग तरह के बैंक और उनके कार्यों पर बात करेंगे।

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र अपने शुरू से लेकर आज एक बहुत प्रतिस्पर्धी और गतिशील क्षेत्र है। क्या ब्लॉग पोस्ट में हम भारतीय बैंकिंग के विकास, भारत में अलग अलग तरह के बैंक, सेक्टर के चेहरे कर रहे चुनौतियां और टेक्नोलॉजी का रोल इस बैंकिंग लैंडस्केप को बदलने में चर्चा करेंगे।

भारतीय बैंकिंग का विकास: Structure of Indian banking system

इंडियन बैंकिंग की शुरुआत 18वीं सदी के आखिरी में बैंक ऑफ हिंदुस्तान की स्थापना के साथ की गई। बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में एक महत्वपूर्ण मोड़ था भारतीय बैंकिंग के विकास में, जहां सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र पर नियंत्रण लेना शुरू किया ताकि वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकें और क्रेडिट एक्सेस को बढ़ा सकें।

भारत के अलग अलग तरह के बैंक:

भारत में कई तरह के बैंक हैं जैसे कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक, सहकारी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय बैंकिंग प्रणाली की रीढ़ है, जाहा सरकार उनकी बहुमत हिस्सेदारी को अपनी करती है। निजी क्षेत्र के बैंक, दूसरी तरफ, निजी संस्थाओं के दुवारा के स्वामित्व और संचालन में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण बाजार हिस्सेदारी हासिल की है।

बैंकों के कार्य: Structure of Indian banking system

भारतीय बैंकिंग प्रणाली में बैंकों के कार्यों में तीन श्रेणियां विभाजित किए जा सकते हैं: प्राथमिक कार्य, द्वितीयक कार्य और तृतीयक कार्य। बैंकों के प्राथमिक कार्यों में जमा स्वीकार करना और पैसा देना शामिल होते हैं जबकी द्वितीयक कार्य लॉकर सुविधाएं, एटीएम सेवाएं और विदेशी मुद्रा सेवाएं जैसी सहायक सेवाएं प्रदान करना शामिल होते हैं। बैंकों के तृतीयक कार्यों में सलाहकार और परामर्श सेवाएं प्रदान करना और प्रचार गतिविधियां करना शामिल होते हैं।

बैंकों की भूमिका भारतीय अर्थव्यवस्था में:

बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानो, लघु और मध्यम उद्यम और आवास जैसे कोई सेक्टर को क्रेडिट प्रदान करते हैं करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बैंक अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य को भी सुविधा करते हैं और व्यापार वित्त और विदेशी मुद्रा सेवाएं जैसे अलग अलग सेवाएं प्रदान करते हैं। भारत सरकार ने बैंकों को वित्तीय समावेशन का एक टूल के रूप में भी उपयोग किया है, कुछ पहलों के द्वार बैंकिंग सेवाओं तक पहुंचने के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में पहुंच को बढ़ाने के लिए।

भारतीय बैंकिंग का चेहरा कर रहे चुनौतियां:

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को कुछ चुनौतियों का सामना करने पड़ रहे हैं, जैसे कि गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए), धोखाधड़ी और साइबर सुरक्षा के खतरों का सामना करना पड़ता है। भारतीय बैंकों के लिए एनपीए एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है, जिसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कोई उपाय किए हैं। फ्रॉड और साइबर थ्रेट भी हाल के वर्षों में बढ़ते गए हैं, इसके लिए बैंकों ने अपने ग्राहकों के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए टेक्नोलॉजी और साइबर सिक्योरिटी में भारी निवेश किए हैं।

 

प्रौद्योगिकी की भूमिका: Structure of Indian banking system

टेक्नोलॉजी ने भारत के बैंकिंग सेक्टर को बदलने में एक बहुत बड़ा योगदान दिया है, जहां डिजिटल बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग ने लोगों के बैंकिंग तारिके को बदला दिया है। कोविड-19 महामारी के चलते लोगों को घर पर रहना पड़ा, टैब डिजिटल बैंकिंग और भी जरूरी हो गया, जिसके चलते बैंक ने अपने ग्राहकों की जरूरत को पूरा करने के लिए का डिजिटल पहल शुरू की।

निष्कर्ष:

चींटी में, भारत के बैंकिंग क्षेत्र ने आजादी के बाद बहुत कुछ सीखा है और आज यह दुनिया के सबसे गतिशील और प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों में से एक है। वो कुछ चैलेंज जैसे एनपीए, फ्रॉड और साइबर थ्रेट के सामने खड़ा है, लेकिन इस सेक्टर ने अपनी एडाप्टेबिलिटी और रिसिलियेंस को चुनौतियों से निपटा लिया है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बैंक में बुरा रहा है और इस तरह से ये सेक्टर बढ़ते हुए ट्रांसफॉर्मेशन के लिए तैयार है।

यहां कुछ अक्सर पूछने वाले सवाल (FAQs) भारत के बैंकिंग से संबंध हैं:

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) क्या है?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भारत का केंद्रीय बैंक है और देश के मौद्रिक नीति का नियंत्रण, मुद्रा का मुद्दा करना और बैंकिंग क्षेत्र का पर्यवेक्षण करना इसके जिम्मेदरी में है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) क्या है?
नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) लोन होते हैं जिनहे कर्जदार निर्धारित समय तक वापस नहीं कर पाता है, जिसका समय आम तौर पर 90 दिनों का होता है। एनपीए भारतीय बैंकों के लिए एक बड़ी समस्या है और इस सेक्टर के लिए साल से एक चुनौती है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और निजी क्षेत्र के बैंक में क्या अंतर है?
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सरकार के द्वार संचित होते हैं, जबकी निजी क्षेत्र के बैंक निजी संस्थाओं के द्वार संचित होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आम तौर पर निजी क्षेत्र के बैंक से अधिक स्थिर और कम कुशल माना जाता है।

डिजिटल बैंकिंग क्या है?
डिजिटल बैंकिंग तकनीक का उपयोग करके बैंकिंग लेनदेन करने को कहते हैं जैसे कि इंटरनेट और मोबाइल डिवाइस। डिजिटल बैंकिंग ग्राहक को अपने घर से अकाउंट बैलेंस चेक करना, फंड ट्रांसफर करना और बिल पे करना जैसे कि बैंकिंग एक्टिविटी करने की सुविधा देता है।

वित्तीय समावेशन क्या है?
वित्तीय समावेशन प्रक्रिया को कहते हैं जिस्मे औपचारिक वित्तीय प्रणाली से अलग हो गए व्यक्तियों को वित्तीय सेवाओं की सुविधा दी जाती है। भारत में वित्तीय समावेशन एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है, जहां एक बड़ी हिस्सा जनसंख्या अभी भी अनबैंक्ड या अंडरबैंक्ड है।

टेक्नोलॉजी ने भारत के बैंकिंग सेक्टर को कैसे प्रभावित किया है?
टेक्नोलॉजी ने भारत के बैंकिंग सेक्टर को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है, जहां डिजिटल बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग ने लोगों के बैंकिंग तारिके को बदला दिया है। कोविड-19 महामारी के चलते जब लोगों को घर पर रहना पड़ा, टैब डिजिटल बैंकिंग और भी जरूरी हो गया, जिसके चलते बैंक ने अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा कर

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